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अमिताभ: March 2013

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रविवार, 31 मार्च 2013. शेर सरीखे टुकड़े. यूं तो मेरे सपने सुहाने बहुत है. और नाकामियों के बहाने. मुझे अपने रकीब से ईतलाफ़ है. वो अपने मकसद में तो साफ़ है. बाते बहुत है तन्हाई की गहरी. वल्लाह क्या शीरीं जबान ठहरी. प्रस्तुतकर्ता. अमिताभ श्रीवास्तव. 2 टिप्‍पणियां:. मंगलवार, 19 मार्च 2013. सोचो तो यार . तुम हजार बहाने बना लो/. चाहे मुझे कारण बना लो. किन्तु 'हमारे' लिए. यह उचित नहीं माना जा सकता /. इसके बावजूद. मुझे कोइ. शिकवा नहीं है /. बस ये जो सिगरेट है न. धुँआ धंस रही है /. सिगरेट पीकर. जिसके ...रीप...

2

अमिताभ: December 2013

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बुधवार, 25 दिसंबर 2013. दीवारे हैं, दीवारें ही दीवारें हैं. दीवारें ही दीवारें है. मेरे अंदर/. कोइ दरवाजा नहीं /. चौखट / भूलभुलैया /. पूरी देह अपने मन और आत्मा के साथ. बंदी है /. बाहर जाने की उत्कंठा. संसार देखने की ललक. हरी भरी वादियों में. दौड़ लगाने की इच्छा. घंटो गपशप /. घंटो बेफिक्री. न कोइ भय. न ही कोइ अज्ञात भय /. सोचता हूँ. चाहता हूँ. लिखता हूँ. पढता हूँ. दीवारों के अंदर /. दीवारों में. विश्वासघात है. धोखा है. आदमी को अकेला कर. तालियों की गूँज है/. और बस कर्णभेदी इस. प्रतिक्षण /. Soul of A Woman.

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अमिताभ: March 2015

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मंगलवार, 10 मार्च 2015. बस जो है वो ही है. मेरे पास. सिर्फ प्रेम था. और उन्हे. इजहार चाहिये था . सूरज की तेज-चिटकती धूप कपाल पर पसीने के साथ चमकती है और वो पौछना चाहते हैं). प्रस्तुतकर्ता. अमिताभ श्रीवास्तव. कोई टिप्पणी नहीं:. मंगलवार, 3 मार्च 2015. हम उजाड के बाशिंदे, आप हवाओ में बहने वाले . उनके लिये. किसी दूसरे के इमोशंस. अब कोई महत्व नहीं रखते . अच्छा है यह . पहले की बात और थी ,. हम भी कमाऊ थे. और व्यस्त थे . थोडा बहुत नाम था ,. प्रतिष्ठा थी . अब ऐसा कुछ नहीं है. ऐसा थोडी न है . नई पोस्ट. मुख&#...

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अमिताभ: January 2015

http://amitabhshrivastava.blogspot.com/2015_01_01_archive.html

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015. वो पहले था. क्योंकि समय परिवर्तित है. अब भी वैसा ही हो या रहे सम्भव नहीं।. इसलिये 'था' से 'है' की तुलना करना. और 'है' को 'था' बना देना उचित नहीं ।. इसे ही स्वीकारो. जो है ।. है' को 'था' से जोडते हुये. किसी काम का न मानना स्मरणीय होता है. आप अपने आप को छल लेते हैं. क्योंकि तब आप 'है' के साथ अन्याय ही नहीं बल्कि उसकी हत्या कर देते हो ।. प्रस्तुतकर्ता. अमिताभ श्रीवास्तव. 1 टिप्पणी:. बुधवार, 14 जनवरी 2015. अब नही आती. कोई चिट्ठी ,. कोई पत्री . न मेल, . आती है तो. नई पोस्ट. शिक&...

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अमिताभ: September 2012

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सोमवार, 24 सितंबर 2012. द्वैत है और अद्वैत भी. चारो और है. कणिका जगत /. ऊर्जा के अबेध कण /. कई कई .,. सब आपस में. आश्चर्य . द्वैत है और अद्वैत भी /. जैसे - 'मै' -'तुम' द्वैत. मगर 'हम' अद्वैत ). प्रस्तुतकर्ता. अमिताभ श्रीवास्तव. 4 टिप्‍पणियां:. मंगलवार, 4 सितंबर 2012. सिगरेट अच्छी होती है. है न तू? मैं भी घुटने टेकना चाहता हूं।. तुझे याद करना चाहता हूं।. सुना है तू ऐसे ही तो सबसे घुटने टिकवाता है, नहीं।. देखूं.कहां है तू? तेरा चमत्कार! बोल.है की नहीं. हा हा हा. घना, छल्लेदार,. कुछ छोड़न&...शाद&#2368...

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मीत: May 2009

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. सरहद पे वो मौत से जूझता है. सरहद पे वो मौत से जूझता है,. उसकी मुहब्बत का दुप्पटा,. उसकी यादों के आंसू पोंछता है,. माँ की आँखों में बिछड़ने का. दर्द अब भी ताजा है. टूटने को तैयार,. एक एक वादा है. पिता रोज उसके गर्व में,. सीना ठोकता है. सरहद पे वो मौत से जूझता है. 169; 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित! 18 टिप्पणियां. मैं पंख लगा उड़ जाऊंगा. कहता है मुझसे,. बोला यार. क्या...सोच...

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मीत: September 2010

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. काश उस मोहल्ले में मेरा भी घर होता. आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ, काफी दिनों से व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग से दूर रहा . एक कोशिश की है दिल के जज्बातों को रचना बनाने की , उम्मीद है आपको पसंद आये . कमरे के कौने में धूप का टुकड़ा,. रोशनदान से छन कर आता. छत पे माँ अचार और पापड सुखाती. देखता हूँ ख्वाब ये कब से? सांझढले मैं थक कर आता. 10 टिप्पणियां. Subscribe to: Posts (Atom).

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मीत: June 2009

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. जब माँ बचपन में,. डांट देती थी. तुम्ही तो दुलारते थे,. जब भागते-भागते में,. खा जाता था ठोकर,. तुम ही तो सँभालते थे,. जीवन का हर सुंदर क्षण,. तुम्हारा ही तो,. कर्जदार है! पर पापा? आज जब तुमको,. मेरी जरुरत. तो. में लाचार हूँ पापा. तुम्हारे अधूरे सपनों की किरचें,. आँखों में चुभती हैं,. नहीं जानता. कैसे,. इन्हे मैं. पूरा करूँगा,. पर तैयार हूँ. सदा रहे यहा&#2305...छोड&#2364...

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मीत: January 2009

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. एक खालीपन. और मेरी आंखों में नमी के आलावा कुछ नहीं होता. हृदयबेध,. मन में नीरसपन. तुम बिन जीवन. एक खालीपन. नयनो में. सावन, जलन-जलन. सीने में. अग्नि, तपन-तपन. कहाँ गए. तुम थे संग-संग॥? तुम बिन जीवन. एक खालीपन. 169; 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित! 23 टिप्पणियां. बदल गया केलेंडर. नव वर्ष का हुआ आगमन. बदली हुयी है दुनिया. छाई खुशियों की लहर,. इसका कोई असर,. आया नववर्ष. शिक&#2...

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मीत: February 2010

http://tumharameet.blogspot.com/2010_02_01_archive.html

तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. मन के वीरान रास्तो पर, बसी तेरी पदचाप है. इस गड्तंत्र दिवस पर तू बहुत याद आया, परेड में तेरे कदमों के निशां थे, आवाज थी पर तू नहीं था. जहाँ भी रहे खुश रहे. love u. तुम गुजर के जा चुके,. ना गम की गुजरती रात है. हर तरफ अब ज़िन्दगी में,. दर्द का अलाप है. मिट नहीं रहा है अबतक,. अनछुआ एहसास है. मन के वीरान रास्तो पर,. बसी तेरी पदचाप है. 13 टिप्पणियां. Subscribe to: Posts (Atom).

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मीत: February 2009

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. सपने तो वही हैं, जो रातों को सोने नहीं देते. टूट कर ये हर पल,. मेरी जान लेते रहे. हमको भी प्यार था इनसे,. ढेरों सपने हम भी संजोते रहे. कभी सोते, कभी जागते,. कभी ज़िन्दगी के संग भागते,. ख्वाब के मोती नींद में पिरोते रहे. पर टूट कर ये हर पल,. मेरी जान लेते रहे. रात की अंगनाई में हम,. इन्हें पूरा करने को तरसते रहे. हर सुबह की अंगड़ाई में,. कुछ आते. कोई ख्वाब! ना दिन. बचपन स&#237...

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मीत: May 2010

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. गाँव के पास अब हाट नहीं लगते. गोबर से लिपे हुए आंगन नहीं दिखते. गाँव के पास अब हाट नहीं लगते. न कहीं, पेड़ों पे आम की बौर है. न नदी के पानी का मध्यम सा शोर है. वो चिमटा, वो फूकनी, वो चूल्हा कहाँ है? अब तो बस पेट्रोल और डीजल का धुआं है. डाली पे अब कहीं झूले नहीं टांगते. गाँव के पास अब हाट नहीं लगते. अब तो के-बोर्ड की टक-टक जवान है. 17 टिप्पणियां. Subscribe to: Posts (Atom).

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. A latter to My BRO. भाई अब मेरे सेल पे तुम्हारा नंबर नही दिखता. जन्मदिन पे तीज त्यौहार पे मुझे तुम्हारी आवाज़ नही सुनाई देती. हाँ दिल से तुम्हारी आवाज आती है. और मैं अपने कंधो पर तुम्हारे हाथो के अहसास को भी महसूस करता हूँ. पर तुम तो बीच राह में मुझे छोड़ चले गए. तेरे बिन जब आई दिवाली. दीप नहीं दिल जले हैं खाली! 2 टिप्पणियां. October 24, 2011 at 3:13 PM. कुछ एहसास. बिग...

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तुम्हारा, उसका और सबका. मुख्यपृष्ठ. तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत. साथी घर जाकर मत कहना. खास कर यह मैंने श्री गौतम राजरिशी. साथी घर जाकर मत कहना. साथी घर जाकर मत कहना. यदि हाल मेरी माँ पूछे तो. जलता दिया बुझा देना. इतने पर भी ना समझे. तो मुरझाया फूल दिखा देना. साथी घर जाकर मत कहना. साथी घर जाकर मत कहना. यदि हाल मेरी बहना पूछे. धागा तोड़ दिखा देना. इतने पर भी ना समझे. तो सब कुछ समझा देना. साथी घर जाकर मत कहना. Subscribe to: Posts (Atom).

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रविवार, 26 जून 2016. कितनी बलियां दे दी. इच्छाओं की ,. आहूत किया श्रम. और स्वेद कितना ,. जीवन कुंड इन समिधाओं से. धधकता रहा. किन्तु. भाग्य था जो. प्रसन्न नहीं हुआ।. प्रस्तुतकर्ता. अमिताभ श्रीवास्तव. 3 टिप्‍पणियां:. मंगलवार, 19 अप्रैल 2016. रास्ता और मौन. आँगन से लेकर. बरामदे तक. बिछी नाकामयाबियों की चादर पर. बैठ कर उम्मीदों के. सहारे अब रहा नहीं जाता।. बहुत कुछ बनाने के फेरे में. बहुत कुछ छूट गया।. छूट गए साथी , संगी , प्रेमी. जो चिपक गया है. अब सिर्फ अन्धेरा है।. झूठ कि सब ठीक है? सब अपने का...कही...

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