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सोची-समझी: December 2011
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सोची-समझी. Friday, 30 December 2011. जाना एक साल का : फ़ेसबुक पर मेरे पहले साल को जैसा मैंने देखा-समझा. कल एक और साल अतीत से जुड़ जाएगा. कई अर्थों में अच्छा व अन्य कई अर्थों में बहुत बुरा साल रहा है यह. निजी तौर पर यह मिला-जुला-सा रहा है. मुझे फेसबुक से जुड़े भी कल एक साल पूरा हो जाएगा. कैसा रहा? मोहन श्रोत्रिय. Wednesday, 28 December 2011. ताकि सनद रहे और बखत-ज़रूरत काम आए. बुद्धिजीवियों के नाम. एक-एक पंक्ति के संदेशनुमा. स्टेटसों की. वन-लाइनर्ज़ की बन आई है. समझ नहीं आता. लगभग वैसे ही. इस मध्य वर...
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सोची-समझी: October 2013
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सोची-समझी. Monday, 28 October 2013. रिश्ते, नेहरू और पटेल के. या अपने आप को बहुत होशियार,अक्लमंद? या दूसरों को बेवक़ूफ़? अज़हर खान. मोहन श्रोत्रिय. Subscribe to: Posts (Atom). यह हूं मैं. मोहन श्रोत्रिय. जयपुर, राजस्थान, India. View my complete profile. सोचने समझने वाले. पुरानी पोस्टों से. लीना मल्होत्रा राव की तीन ताज़ा कविताएं. उर्दू भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत पसंद की जाने वाली ज़ुबानो...शेक्सपीयर और आज का समय. शेक्सपीयर के नाटक Timon Of Athens की ये बह&#...हरीश करमचंदाणी ...मेरे प...बाब...
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सोची-समझी: March 2012
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सोची-समझी. Friday, 30 March 2012. मेरे साथ यह कैसे हो गया! 8234;I never wallowed in this thought. I have seen several genuinely nice people suffer much more and my illness looked insignificant in comparison. Their stories of handling grief and getting life back to normal gave me tremendous strength and courage to face my little situation positively and with a smile. Your prayers and good wishes strengthened me and my family and I remain forever indebted to you.. 8234;1. Never give up:. टीका...पान...
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सोची-समझी: September 2012
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सोची-समझी. Thursday, 13 September 2012. सबसे ख़तरनाक (पाश). खालिस्तानी उग्रवादियों के खि़लाफ़ खम ठोक कर खड़े होने वाले, और उन्हीं की गोलियों का निशाना. बने इस परम देशभक्त, बड़े कवि के बारे में इस पार्टी व इसके नेताओं की यह समझ साहित्य-संस्कृति के लिए कितनी ख़तरनाक साबित हो सकती है! पाश की कविता. सबसे ख़तरनाक. श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती. पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती. बैठे-बिठाए पकड़े जाना - बुरा तो है. पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता. कपट के शोर में. घर से निकलना काम पर. लेकिन तुम&#...डरे ह...
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सोची-समझी: February 2012
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सोची-समझी. Wednesday, 22 February 2012. सरोज कुमार की सात कविताएं. बुद्ध को नाचीज़ मुर्दे ने. वह कह दिया,. जो संभव नहीं होता. धर्माचार्यों की पीढ़ियों से! रेलिंग पकड़कर नहीं उतरती. और न सीढ़ियों से.". डिग्री को. तलवार की तरह घुमाते हुए. वह संग्राम में उतरा. वह काठ की सिद्ध हुई! डिग्री को. नाव की तरह खेते हुए. वह नदी में उतरा. वह काग़ज़ की सिद्ध हुई! डिग्री को. चेक की तरह संभाले हुए. वह बैंक पहुंचा. वह हास्यास्पद सिद्ध हुई! उसी दीवार पर उसने लटका दिया,. जिस पर शेर का मुंह. 3 सेनापति. बोली :. ये ब...
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सोची-समझी: September 2011
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सोची-समझी. Thursday, 29 September 2011. सुनो, भगत सिंह, सुनो! मैंने कहा था. कुछ नहीं है इस समय ऐसा. जो तुम्हें ख़ुशी दे सके. मुझे. और बहुत कुछ बता देना चाहिए था. तभी एक सांस में , बिना रुके. यानी वह सब जो तुम्हारे पीछे से. हुआ है इस देश में. यह देश. बदल देना चाहते थे तुम. जिसकी तकदीर, जिसका मुस्तक़बिल. लिख देना चाहते थे अपने नए अंदाज़ में,. सच कहूं यह देश तुम्हारे लायक था ही नहीं. क्यों आखि़र? सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है. वे मन से चाहते ही. अपनाया था तुमने जिसे. वह सम्मान पा जाए. चुम्बक का,. शुरू...तुम...
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सोची-समझी: January 2013
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सोची-समझी. Tuesday, 1 January 2013. नए साल के पास ऐसा होगा ही क्या . अनागत कुछ ज़्यादा ही. उम्मीदें जगाता है. गुज़रे कल के. और आज के अनुभव. जन्म देते हैं आशंकाओं को. बढ़ाते हैं भय को भी. रात कितनी भी लंबी हो. दुख की. चाहे अंधेरी हो. कितनी ही. भोर की. प्रतीक्षा रहती ही है. दुखों की उम्र पूरी. हो जाने का भरोसा भी. अनागत जैसे ही बदलता है. आगत में. और क्रमशः जुड़ता. चला जाता है विगत में. भय और आशंकाएं. नहीं लगते आधारहीन. जाने में कुछ ज़्यादा ही. धीमा हो गया है साल. बहुत साल रहा है. कब पड़ेगा. करने की आस. फिर...
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सोची-समझी: September 2013
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सोची-समझी. Saturday, 14 September 2013. कविता में भारतीयता की पहचान. मोहन श्रोत्रिय. मोहन श्रोत्रिय. Sunday, 8 September 2013. मृतक तो महज़ आंकड़े होते हैं. हथियार किसी के, हाथ किसी के. मरने-मारने वाले कब समझेंगे. इस बहकी-वहशी सियासत के खेल को! लड़ानेवालों और लड़नेवालों के हित एक नहीं हैं. कितना खून बह जाने के बाद. समझ में आएगी यह छोटी-सी बात! लड़ानेवाले बचे रह जाते हैं. और मोहरा बने. लड़नेवाले धो बैठते हैं जान से हाथ. और इनमें से कुछ. भड़कती आग को देख. गद्दी पर.हर गद्दी पर. तुम आओगे नही...ज़र...
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सोची-समझी: July 2012
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सोची-समझी. Saturday, 28 July 2012. अन्ना आंदोलन : कल और आज. क्या यह नई रणनीति है? तो फिर शांतिपूर्ण अनशन की सार्वजनिक घोषणा का क्या हुआ? यह सवाल पूछा जाना इसलिए भी वाजिब और जायज़ है कि पिछले दिनों एजेंडे में कोई न कोई नया बिंदु जुड़ जाता रहा है, हर दिन. भगवान के बारे में मुझे पता नहीं! मोहन श्रोत्रिय. कोई जगह नहीं है यहां स्त्रियों के लिए: दो कविताएं. बेटियों को नीलामी पर चढ़ाने को अभिशप्त है यह मां. वह लड़कियां. बेचने-ख़रीदने का काम. आदि से अंत तक मां. बस एक मां! नहीं सकती है वह. भद्र लोग. जन्मत&#...
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सोची-समझी: November 2013
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सोची-समझी. Thursday, 14 November 2013. लुट गई विरासत. विरासत को. अपनी शानदार विरासत को. आज़ादी की लड़ाई की विरासत को. नहीं सहेजा उन्होंने. बटमारों को मौक़ा मिल गया! मोश्रो. मोहन श्रोत्रिय. विरासत के नासमझ ध्वज-वाहकों ने कचरे के ढेर में फैंक दिया विरासत को! आज नेहरू के स्मरण की रस्म-अदायगी होगी. जैसे पंद्रह दिन पहले इंदिरा गांधी और सरदार पटेल के साथ हुआ था. और तेतालीस दिन पहले महात्मा गांधी को याद किया गया था. मोश्रो. मोहन श्रोत्रिय. Subscribe to: Posts (Atom). यह हूं मैं. View my complete profile. लीन...