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हम और तुम: December 2009
http://pratimadu.blogspot.com/2009_12_01_archive.html
हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. गुरुवार, 24 दिसंबर 2009. मैंने माना कि मै जानवर हूँ. मैंने माना कि मै जानवर हूँ. तुम अपने को इंसान कह सकते हो? मैंने न मारा किसी को. न की गाली -गलोच. न किसी को रुलाया- सताया. तब भी न जाने क्यों? जानवर मै कहलाया. कहते है. तुम हो बुद्धिमान. पर क्या बचा पाए तुम अपना इमान. नहीं तुम इंसान नहीं. तुम भी हो एक जानवर. जो दूसरो को नोचता हुआ. रिश्तों को तोड़ता हुआ. बस आगे बढ़ना चाहता है. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. लेबल: आदमी. सदस्यत&...
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हम और तुम: October 2009
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हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009. गुनाहों का देवता' में ऐसा क्या? कभी ये संबंध राखी के सूत से भी ज्यादा पवित्र हो जाता है तो कभी प्रेमी -प्रेमिका की तरह (मै तुम्हारे मन को समझता हूँ , सुधा! क्यों इसे प्यार का एक हिस्सा नहीं माना जाता? प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. 10 टिप्पणियां:. लेबल: साहित्य-कर्म. रविवार, 11 अक्तूबर 2009. जनता अब सरकार की मोहताज नहीं. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. 2 टिप्पणियां:. सत्ता के सहारे. प्रतिमा. नई पोस्ट. अजय ब...
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हम और तुम: साहित्य में दलित स्त्री
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हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. सोमवार, 2 जुलाई 2012. साहित्य में दलित स्त्री. यहाँ तक की उनके लिए एक खाका तैयार कर दिया जाता है जिस पर उन्हें चलना है।. इस प्रकार मेरे आलेख-पाठ के मुख्य बिंदु होंगे।. स्त्री बनाम सामाजिक, आर्थिक तथा घरेलू हिंसा. स्त्री, दलित एवं आदिवासी स्त्री बनाम पुरुष वर्चस्व. दलित स्त्री: ‘स्व’ की पहचान. दलित तथा आदिवासी स्त्री: स्वसाध्य के रूप में. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. कोई टिप्पणी नहीं:. पुरानी पोस्ट. खबरी लाल.
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हम और तुम: November 2009
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हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. शनिवार, 21 नवंबर 2009. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,. चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है. मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,. चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है. आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है. क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. दिनों. ऑनलाइन ह&...
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हम और तुम: February 2011
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हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. बुधवार, 9 फ़रवरी 2011. २४ जनवरी को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है।. इस दिन विभिन्न संगठनो और. संस्थानों में लड़कियों के व्यक्तित्व और अस्तित्व को लेकर अलग -अलग. तरह की चर्चाएँ. की जाती हैं कि. क्या वह नहीं चाहती कि उसका भी करिअर बने? क्या उसके सपने -सपने नहीं होते? प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रविवार डॉट कॉम. तहलका हिंदी. खबरी लाल.
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हम और तुम: January 2010
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हम और तुम. हज़ार सपनों की दुनिया नहीं मिली मुझको,मुझको बस एक सपने की ही तलाश थी. गुरुवार, 14 जनवरी 2010. तेरी याद. तेरी वो हर बात. मुझे आज तक है याद. तेरा रोना,. तेरा हँसना,. खफा होना या. कुछ कहना,. या चुप रहना. तेरी बातें,. जो चुप होके तू कहती थी. वो सब रातें जो गुज़री थीं. तेरे खयालों मे. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. 6 टिप्पणियां:. रविवार, 10 जनवरी 2010. 3 idiots- छोटा subject बड़ी बात. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. 2 टिप्पणियां:. बुधवार, 6 जनवरी 2010. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिमा. नई पोस्ट. खबरी लाल.
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महावीर: 'नूतन वर्ष कवि सम्मलेन'
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Thursday, 31 December 2009. नूतन वर्ष कवि सम्मलेन'. नव-वर्ष के शुभ अवसर पर नूतन वर्ष कवि-सम्मलेन का. आरम्भ वरिष्ठ ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक. प्राण शर्मा की ग़ज़ल से करते हैं:. साल नया है-. प्राण शर्मा. ढोल बजाओ ,धूम मचाओ ,साल नया है. क्यों ना ऐसा रंग जमाओ , साल नया है. खुल कर यारो हंसो-हंसाओ , साल नया है. चिंताओं से छुट्टी पाओ , साल नया है. इससे अब क्या लेना-देना मेरे यारो. यानी नफ़रत दूर भगाओ , साल नया है. झूमो, नाचो और लहराओ , साल नया है. प्राण शर्मा. नव वर्ष अभिनन्दन. तबाहियो...मिरी...
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काव्यम्: आग नहीं तो कविता नहीं
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काव्यम्. कविता में इन दिनों यहॉं-वहॉं. शुक्रवार, अक्तूबर 08, 2010. आग नहीं तो कविता नहीं. समीक्षा/लिखे में दुक्ख/लीलाधर मण्डलोई. आग नहीं तो कविता नहीं. हाँ, अगर कवितायें हमारे समय के सबसे समर्थ कवि लीलाधर मण्डलोई की हैं,. 8216;‘बार-बार कुचले जाने पर भी. खड़ी होकर. अपने होने की घोषणा करती है. जैसे दूब. हम उसी कुल के हैं।’’ (कुल, पृ। 30). 8216;‘जिनका सिरहाना. पत्थर रहा हो. उन्हें तकिये पर नींद. नहीं आती. पत्थर की कोमलता. 8216;‘जीवन के कुछ ऐसे शेयर थे. बाजार में. अगर दुक्ख है. और सबका नहीं. घिरे...हमने...
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