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अग्नि की खोज: September's Evening
http://burning-ghats.blogspot.com/2012/04/septembers-evening.html
अग्नि की खोज. Friday, April 27, 2012. जाने क्यूँ जानू ना. रंग खोये कहाँ . धुंधली इन आँखों में, बारिशों से धुले,. चेहरे और कुर्सियां. रौशनी है किन्ही पर्दों पे,.है अँधेरा कई आँखों में, सपनो में. जानू ना शाम कैसे बनी फिर सुबह. खाली फिर कुर्सियां. गुनगुनाते कोई गीत भूले हुए,. गीत सपनो के हमने जो देखे कभी . हम चले आये फिर भीड़ में भूलने. गीत बचपन के, , सपने संजोये हुए. अंत ही सत्य है, सच है सुबह,. जो चुभती है, कहती है जिंदा हूँ मैं. याद रखते नहीं हम जिन्हें. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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अग्नि की खोज: April 2007
http://burning-ghats.blogspot.com/2007_04_01_archive.html
अग्नि की खोज. Tuesday, April 10, 2007. मामला शुरुआत का. पहली शुरुआत बड़ी आनंदकर होती है। यह पहली शुरुअल क्या है? क्या कभी किसी ने दूसरी शुरुआत कि है? गुणीजन आपत्ति करेंगे, तो भाई ये तो बातें कहने का तरीका है, और ग़लत तरीका भी आख़िर एक तरीका तो होता ही है।. तो मित्रों कोशिश यही है कि सही परिणाम ग़लत शुरुआत का बंधक न होने पाए । [. रूह घायल है मेरी, सपने मेरे जिंदा हैं. जिस्म हारा है मगर दिल तो नही हारा है।. ललित निबंध. हास्य-व्यंग्य. Subscribe to: Posts (Atom). ललित निबंध. View my complete profile.
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अग्नि की खोज: दूसरी शुरुआत ...कुछ नयी बात
http://burning-ghats.blogspot.com/2007/05/blog-post.html
अग्नि की खोज. Tuesday, May 22, 2007. दूसरी शुरुआत .कुछ नयी बात. दूसरी शुरुआत/कुछ नयी बात। जब यूं कहा तो एकबारगी ऐसा लगा कि मैं शायर हो गया।. इस खुशफहमी को एक ज़ोर कि लात पडी रमलाल्जी के गधे के किस्से से। अब आप पूछोगे कि यह आदमीयों कि ज़मात मे गधा कहा से आ गया? लेकिन इन सारी बातों का शायरी से क्या वास्ता? शनैः-शनैः ही क्यों? बुद्धै: बुद्धै: क्यों नही? यही है अपनी आजादी? यही अपनों का भारत है? यही गाँधी का सपना था,यही सपनो का भारत है? विशाल सिंह. May 22, 2007 at 7:37 AM. दिल की कलम से. ललित निब&#...हास...
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अग्नि की खोज: मामला शुरुआत का.
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अग्नि की खोज. Tuesday, April 10, 2007. मामला शुरुआत का. पहली शुरुआत बड़ी आनंदकर होती है। यह पहली शुरुअल क्या है? क्या कभी किसी ने दूसरी शुरुआत कि है? गुणीजन आपत्ति करेंगे, तो भाई ये तो बातें कहने का तरीका है, और ग़लत तरीका भी आख़िर एक तरीका तो होता ही है।. तो मित्रों कोशिश यही है कि सही परिणाम ग़लत शुरुआत का बंधक न होने पाए । [. रूह घायल है मेरी, सपने मेरे जिंदा हैं. जिस्म हारा है मगर दिल तो नही हारा है।. ललित निबंध. हास्य-व्यंग्य. अभय तिवारी. April 10, 2007 at 7:48 PM. April 13, 2007 at 9:48 PM. Are men...
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अग्नि की खोज: April 2012
http://burning-ghats.blogspot.com/2012_04_01_archive.html
अग्नि की खोज. Friday, April 27, 2012. जाने क्यूँ जानू ना. रंग खोये कहाँ . धुंधली इन आँखों में, बारिशों से धुले,. चेहरे और कुर्सियां. रौशनी है किन्ही पर्दों पे,.है अँधेरा कई आँखों में, सपनो में. जानू ना शाम कैसे बनी फिर सुबह. खाली फिर कुर्सियां. गुनगुनाते कोई गीत भूले हुए,. गीत सपनो के हमने जो देखे कभी . हम चले आये फिर भीड़ में भूलने. गीत बचपन के, , सपने संजोये हुए. अंत ही सत्य है, सच है सुबह,. जो चुभती है, कहती है जिंदा हूँ मैं. याद रखते नहीं हम जिन्हें. Subscribe to: Posts (Atom). Searching for the sun.
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अग्नि की खोज: May 2007
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अग्नि की खोज. Tuesday, May 22, 2007. दूसरी शुरुआत .कुछ नयी बात. दूसरी शुरुआत/कुछ नयी बात। जब यूं कहा तो एकबारगी ऐसा लगा कि मैं शायर हो गया।. इस खुशफहमी को एक ज़ोर कि लात पडी रमलाल्जी के गधे के किस्से से। अब आप पूछोगे कि यह आदमीयों कि ज़मात मे गधा कहा से आ गया? लेकिन इन सारी बातों का शायरी से क्या वास्ता? शनैः-शनैः ही क्यों? बुद्धै: बुद्धै: क्यों नही? यही है अपनी आजादी? यही अपनों का भारत है? यही गाँधी का सपना था,यही सपनो का भारत है? Subscribe to: Posts (Atom). ललित निबंध. View my complete profile.