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बेताब की कलम से...: July 2008
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 10 जुलाई 2008. है कामयाब इस दुनिया में. है कामयाब इस दुनिया में, जो सबसे बड़ा भौकाली हो।. हरदम लाखों की बात करे, चाहे जेब भले ही खाली हो।।. न करना तो सीखा ही नहीं, और लम्बी फेंकने मे शातिर,. खाली बातो से गल्ल करें, हो अपने मतलब में माहिर,. चमक-दमक वालों खातिर, वो नजरें बिछाएं रहता है,. प्रस्तुतकर्ता. योगेश ‘बेताब’. कोई टिप्पणी नहीं:. लेबल: कव्वाली. नई पोस्ट.
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बेताब की कलम से...: चन्द्रघण्टा
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008. चन्द्रघण्टा. सिहं वाहिनी चारू छटा माँ. तुम दुर्गा की शक्ति तृतीया. दस भुजी चन्द्रघण्टा मां।. धनुषबाण जपमाल कमंडल. गदा त्रिशूल तलवार कमल. अर्द्ध चन्द्र माथे पर सोहे. भव्य मुकुट भक्ती मन मोहे. सुबरन अंग लाल चूनर में,. पावन रूप सिंगार सजा मां।. चंडध्वनि से दानव डरते. किन्तु भक्त सब निर्भय रहते. बिन मांगे यश वैभव पाता. लोक और परलोक बना दे. लेबल: भज़न.
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बेताब की कलम से...: कालरात्रि
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. मंगलवार, 25 नवंबर 2008. कालरात्रि. शक्ति सप्तभ्यंकरी।. मां कालरात्रि शुभंकरी॥. हस्त तीक्ष्ण कटार वाली. लौह कंटक धार वाली. त्रिनेत्री हे अभय दानी. भक्त हित कर अपर दानी. कण्ठ विधुत माल शोभित. रक्तिम चुनर बाघम्बरी।. जब दानवी परिवृत्ति हरषे. तव नासिका ज्वालाग्नि बरसे. सब भूत-प्रेत पिशाचिनी. मां भक्त भय दुःख वारिणी. भुज चार गर्दभ वाहना. पुण्य फल दे दो अपार. लेबल: भज़न.
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बेताब की कलम से...: November 2008
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. मंगलवार, 25 नवंबर 2008. कालरात्रि. शक्ति सप्तभ्यंकरी।. मां कालरात्रि शुभंकरी॥. हस्त तीक्ष्ण कटार वाली. लौह कंटक धार वाली. त्रिनेत्री हे अभय दानी. भक्त हित कर अपर दानी. कण्ठ विधुत माल शोभित. रक्तिम चुनर बाघम्बरी।. जब दानवी परिवृत्ति हरषे. तव नासिका ज्वालाग्नि बरसे. सब भूत-प्रेत पिशाचिनी. मां भक्त भय दुःख वारिणी. भुज चार गर्दभ वाहना. पुण्य फल दे दो अपार. लेबल: भज़न. नई पोस्ट.
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बेताब की कलम से...: कूष्मांडा
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008. कूष्मांडा. जय जय जय कूष्मांडा माता।. जग जननी ब्रह्माण्ड विधाता॥. चक्र, गदा, कमण्डल वाली. धनुष बाण, कमल दल वाली. अमृत कलश जयमाला धारी. सिंह सवार कूष्मांड बलि प्यारी. आदि शक्ति माते जग सर्जक. रोग शक्ति मां मुक्ति प्रदाता।. ऋदि-सिद्धि आरोग्य प्रदानी. आयु, शक्ति, यश, भक्ति दानी. रविमण्डल में रूप विराजे. भक्त अचल मन आया द्वारे. लेबल: भज़न. नई पोस्ट.
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बेताब की कलम से...: August 2008
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. रविवार, 3 अगस्त 2008. गोरी अब के सवनवां. गोरी अब के सवनवां दगा दइ गै राम।. पीर पूछौ न यक से सवा कइ गै राम।।. दिनै-दिन मेघा आवैं अकासे,. बरसे बिना जांय दइ-दइ कै झांसे,. गिनि-गिनि तरइया भोरहरी निहारी. कल्झि-कल्झि जाय रे भुंइयां तरा से,. पुरवा संग बदरवा, दफा होई गै राम।. पानी बिना पियरानी बैठाई बेरन,. पियासा मुरैला, मुरैली सगर वन,. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: गीत. लेबल: गीत. पूछो न...मौस...
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बेताब की कलम से...: सिद्धिदात्री
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008. सिद्धिदात्री. जै जै सिद्धिदात्री जय माँ. सिद्धि अष्टदश दात्री जय मां. शंख, चक्र, कर कमल सुहावन. गदा पद्म आसन मन भावन. सुर नर मुनि दानव सब पूजें. आपस में तेरे बल जूझे. बने अर्द्धनारीश्वर शिव जी. पाकर कृपा तुम्हारी जय मां।. सच्चे मन से जिसने ठाना. कठिन नहीं है मां को पाना. मां की कृपा भक्त पर घूमें. उसका चरण सफलता चूमें. लेबल: भज़न. नई पोस्ट.
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बेताब की कलम से...: स्कन्दमाता
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008. स्कन्दमाता. जै हो जै हो जय हो स्कन्द मैया।. कर दे भक्तों की शक्ति बुलन्द मैया॥. कर में कमल लाल. अंक कार्तिकेय लाल. पद्म आसन कमाल. सिर पे मुकुट विशाल. सुन ले पुकार, आ शेर पे सवार. बिखेर दे दया की सुगन्ध मैया।. चार भुज स्वरूपा. दुर्गा पंच रूपा. नाम जप अनूपा. बने रंक भूपा. शुभ्र वर्ण वाली, श्वेत बसन वाली. हे शक्ति दायिनी. पुष्कल फल दानी. लेबल: भज़न.
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बेताब की कलम से...: October 2008
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बेताब की कलम से. 8216;घर समाज की विसंगतिया जब दिल पर चोट करती है। तो लेखनी बरबस उठ जाती है। यही है साहित्य सृजन का आधार।’. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008. सिद्धिदात्री. जै जै सिद्धिदात्री जय माँ. सिद्धि अष्टदश दात्री जय मां. शंख, चक्र, कर कमल सुहावन. गदा पद्म आसन मन भावन. सुर नर मुनि दानव सब पूजें. आपस में तेरे बल जूझे. बने अर्द्धनारीश्वर शिव जी. पाकर कृपा तुम्हारी जय मां।. सच्चे मन से जिसने ठाना. कठिन नहीं है मां को पाना. मां की कृपा भक्त पर घूमें. उसका चरण सफलता चूमें. लेबल: भज़न. महागौरी. परा अम्...