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चला बिहारी ब्लॉगर बनने: July 2014
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने. दोस्त लोग के जिद में आकर हमको ई ब्लॉग फ्लॉग के चक्कर में पड़ना पड़ा.बाकी अब जब ओखली में माथा ढुकाइए दिए हैं, त देखेंगे कि केतना मूसर पड़ता है हमरा मूड़ी पर. रविवार, 27 जुलाई 2014. नो स्मोकिंग. यस्तित्वन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभते. र्जुन।. कर्मेन्द्रियै कर्मयोगमसक्त: स विशिष्यते॥ (गीता 3/7). परंतु हे अर्जुन! अऊर उनको काटो त खून नहीं।. उनका पसन्दीदा ब्राण्ड होता था कैप्स्टन – नेवी कट. अऊर बाद में विल्स. बस, कभी पीबे नहीं किए! प्रस्तुतकर्ता. लेबल: चला बिहारी. पिता जी. मेरे पन&...हम बत...
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने: December 2013
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने. दोस्त लोग के जिद में आकर हमको ई ब्लॉग फ्लॉग के चक्कर में पड़ना पड़ा.बाकी अब जब ओखली में माथा ढुकाइए दिए हैं, त देखेंगे कि केतना मूसर पड़ता है हमरा मूड़ी पर. मंगलवार, 31 दिसंबर 2013. ज़िन्दगी फूलों की नहीं. आप हमको पट्टी हटाने दीजियेगा कि नहीं! कम्पाउण्डर साहब! बहुत दरद करता है! अरे ठीक हो गया है घाव, अब दरद नहीं करेगा! आप का समझियेगा. दरद त हमको न हो रहा है! तनी आराम से हटाइये! ठीक है! अरे बाप. किया, मगर तुरत नॉर्मल हो गया. ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद. त एकबार जो लोग ई ...फिलि...
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने: October 2013
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने. दोस्त लोग के जिद में आकर हमको ई ब्लॉग फ्लॉग के चक्कर में पड़ना पड़ा.बाकी अब जब ओखली में माथा ढुकाइए दिए हैं, त देखेंगे कि केतना मूसर पड़ता है हमरा मूड़ी पर. बुधवार, 16 अक्तूबर 2013. आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम. साल 2000. जगह कोलकाता. आई लव येलो रोज़ेज़! वास्तव में ये लाल गुलाब थे, आपके इंतज़ार में पीले पड़ गये हैं! एतना सुनने के बाद ऊ बहुत खुलकर हँसीं अऊर पूरा ऑफिस से. भार्मा! एक रोज साम को जाते समय हमको बोलाए अऊर बोले,. भार्मा! एक ज़रूरी काम है). हैं, बोलून! कब किया). शे क...
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गिरीश पंकज के व्यंग्य: March 2011
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गिरीश पंकज के व्यंग्य. हर हाल में हम सच का बयान करेंगे. बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे . 16 मार्च 2011. ऑफ दि रिकार्ड' की जय हो . दूसरे को गाली दे दो, फिर कहो - 'यह ऑफ दि रिकार्ड है।'. नेताओं का तकिया कलाम है - 'ऑफ दि रिकार्ड'। मन की भड़ास निकाल कर उस पर 'ऑफ दि रिकार्ड' चस्पा कर दो।. भ्रष्टाचार पर नेताजी बोलने लगे - ' देश का पतन हो रहा है साहब! और बता दूँ,कि उसकी पत्नी भी भ्रष्टाचारी है।'. आखिर विधायक ने गाली दी थी कि नहीं? अरे, दी तो थी मगर उन शब्दों को व&#...विधानसभा अध्यक्...लेबल: girish pankaj. पì...
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गिरीश पंकज के व्यंग्य: April 2014
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गिरीश पंकज के व्यंग्य. हर हाल में हम सच का बयान करेंगे. बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे . 22 अप्रैल 2014. हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा! हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा! गिरीश पंकज. हमारा मित्र पिछले दिनों एक पुस्तक के लोकार्पण में गया और उसने कसम खा ली कि. हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा, माँ क़सम! मैंने पूछा, ' ऐसा क्या हो गया भाई? और सीधे माँ कसम? मित्र बोला, ' हां, माँ कसम, खाओ तो ढंग की कसम खाओ. वैसे अब. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट.
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काश मिले मंदिर में अल्लाह मस्जिद में भगवान मिले. | साझा-सरोकार
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html
मुखपृष्ठ. साझा-सरोकार. तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों. की तर्ज़ पर मीनारों और. गुम्बदों को ऊँचा. करने और सड़कों पर. नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब. हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट. ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को. इससे काफी चोट पहुँच रही है. सर्व-धर्म समभाव. विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो. संवाद बनता है. On मंगलवार, 15 दिसंबर 2009. सुबह मोहब्बत शाम महब्बत. महत्वपूर्ण. अब तक आपके. आंखो...सहि...
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December 2009 | साझा-सरोकार
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मुखपृष्ठ. साझा-सरोकार. तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों. की तर्ज़ पर मीनारों और. गुम्बदों को ऊँचा. करने और सड़कों पर. नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब. हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट. ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को. इससे काफी चोट पहुँच रही है. सर्व-धर्म समभाव. विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो. संवाद बनता है. रिजवाना : संस्कृत की नयी इबारत. On गुरुवार, 31 दिसंबर 2009. अरबी में पî...कडे़...
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चलते -चलते...!: January 2014
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कवितायें. क्षणिकाएं. पॉडकास्ट. उपयोगी लिंक. विविध विषय. प्रिंट मीडिया. ब्लॉगर मिलन. सेमीनार. फोटो गैलरी. 31 जनवरी 2014. आत्महत्या पर आत्मचिन्तन.3. ब्लॉगर :. केवल राम. 8 टिप्पणियां:. अक्सर जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे हम कहते हैं कि उसने देह त्याग दी. लेकिन यह सच नहीं है. देह का साथ आत्मा छोड़ देती है और शरीर निर्जीव हो जाता है. दूसरा है कर्मक्षय. तीसरा है आयु और कर्म दोनों का क्षय. और चौथा कारण है उपच्छेदक कर्म. इन सब में पहले कारण आयुक्षय. में मनुष्य जीवन और उसकí...देहत्याग. हाला&...के ...
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शहरोज़ का रचना संसार: बाज़ार ,रिश्ते और हम
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शहरोज़ का रचना संसार. हमारे बारे. हाल-बेहाल. साहित्य-अदब. नारी-विमर्श. पहला पन्ना. शनिवार, 10 जुलाई 2010. बाज़ार ,रिश्ते और हम. हसीं वादियों में इठलाते एक देश. जहां स्याही सफेद हो जाया करती थी. में जा जा देसी कव्वे इतराते. देस में आकर इनका दर्प तीक्ष्ण हो जाया करता. श्रद्धा. विश्वास. नैतिकता. ईमानदारी. अहिंसा. वात्सल्य . ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे. जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते. पुरखों की आत्माएं व्यथित थीं. बेटे चोट तो नहीं. जबकि बेटा. इमारतों से. आत्माएं. Mujhe hindi kavita kee...
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मयारु माटी mayaru mati : January 2015
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मयारु माटी mayaru mati. Thursday, 29 January 2015. राजिम में कुंभ-मेला से पहले. Wednesday, 28 January 2015. सुशील भोले के चार डांड़ - 1. सच के सुजी ह बस नानेकुन होथे. फेर लबराही फुग्गा ल फुस ले कर देथे. कतकों पोत पाउडर चेहरा उजराये बर. फेर बेरा के ताप ह करिया के छोड़थे. सच के दुकान म लबरा तराजू. फोकला धरा देथे कहिके जी काजू. आज चारोंखुंट देखौ इही हाल दिखथे. ठोसहा-रतन मनला कर देथें बाजू. संस्कृति बिन अधूरा हे भाषा-आन्दोलन. सुशील भोले. मनं. 54-191, डॉ. बघेल गली,. ईमेल - sushilbhole2@gmail.com. तेजस अ...