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अ आ: December 2010
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यानी सीखने की शुरुआत. Friday, December 24, 2010. पढ़िए उदय प्रकाश का मन. रेकार्ड. उन्हें. हरियाणा. साहित्य. पत्रिका. हरिगंधा. हरिगंधा. बहुचर्चित. महीनों. हिंदी. साहित्य. साहित्य. पुरस्कार. संदर्भों. अच्छी रचना बहुत धीमी आवाज में बोलती है. उदय प्रकाश से अरुण आदित्य की बातचीत. क्या आप सामान्य बच्चों से कुछ अलग थे? आपको नहीं लगा कि गैर प्रगतिशील घोषित कर दिया जाएगा? मनमानी करेंगे तो पाठक पकड़ लेगा? वो झूठ बोलते हैं. शेर को बचाएगी घास. और हिरन बचाएगा शेर को. तिरिछ कहानी को पढ...प्रेमचंद ...प्रदì...
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अ आ: June 2010
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यानी सीखने की शुरुआत. Friday, June 25, 2010. देखिये, नामवर सिंह क्या कहते हैं? 7 :50 बजे. प्रख्यात. करेंगे।. कहेंगे. लोकार्पण. उन्होंने. पौराणिक. देखिये. हैं।. कार्यक्रम. 7 :50 बजे. कार्यक्रम. उत्तर वनवास. नामवर सिंह. Saturday, June 5, 2010. रमकलिया की जात न पूछो. चित्रकार-कथाकार रवीन्द्र. की है।. रमकलिया की जात न पूछो. कहाँ गुजारी रात न पूछो. नाक पोछती, रोती गाती. धान रोपती, खेत निराती. भरी तगारी लेकर सिर पर. दो-दो मंजिल तक चढ़ जाती. श्याम सलोनी रामकली से. किसके हाथ न पूछो. गुजारी. इन्हे...रंग...
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अ आ: August 2011
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यानी सीखने की शुरुआत. Tuesday, August 30, 2011. एन जी ओ का पइसा बोला. मैं भी अन्ना. गलियां बोलीं, मैं भी अन्ना, कूचा बोला, मैं भी अन्ना! सचमुच देश समूचा बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना! भ्रष्ट तंत्र का मारा बोला, महंगाई से हारा बोला! बेबस और बेचारा बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना! जोश बोला मैं भी अन्ना, होश बोला मैं भी अन्ना! युवा शक्ति का रोष बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना! कर्मनिष्ठ कर्मचारी बोला, लेखपाल पटवारी बोला! मैं भी अन्ना! अरुण आदित्य. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile.
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अ आ: July 2010
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यानी सीखने की शुरुआत. Thursday, July 8, 2010. झोपड़ी के हिस्से में किस्से. साहित्यिक. पत्रिका. प्रकाशित. मित्रों. जो न पढ़ सके हों , उनके. लिए इसे यहाँ फिर. प्रकाशित. जा रहा है।. झोपड़ी. हिस्से. किस्से. पता नहीं झोपड़ी का दर्द जानने की आकांक्षा थी. या महज एक शगल. कि झोपड़ी. में एक रात गुजारने को आ गया महल. झोपड़ी फूली नहीं समा रही. उमंग से भर गया है जंग लगा हैंडपंप. प्यार से रंभा रही है मरियल गाय. कदम चूम कर धन्य है उखड़ा हुआ खड़ंजा. अभिमान से फूल गई है कथरी. महल ने फिर पूछा. जिन्हेæ...पर जब कोई...
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अ आ: January 2012
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यानी सीखने की शुरुआत. Friday, January 20, 2012. ऐसी एक कविता. जिसे टेडी बियर की तरह उछाल-उछाल. खेल सके एक बच्चा. जिसे बच्चे की किलकारी समझ. हुलस उठे एक मां. जो प्रतीक्षालय की किसी पुरानी काठ-बेंच की तरह. इतनी खुरदरी हो, इतनी धूलभरी. कि उसे गमछे से पोछ नि:संकोच. दो घड़ी पीठ टिका सके कोई लस्त बूढ़ा पथिक. जो रणक्षेत्र में घायल सैनिक को याद आए. मां के दुलार या प्रेयसी के प्यार की तरह. जो योद्धा की तलवार की तरह हो धारदार. जो धार पर रखी हुई गर्दन की तरह हो. आज तक तो नहीं बनी।. अरुण आदित्य.
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अ आ: May 2012
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यानी सीखने की शुरुआत. Friday, May 25, 2012. स्मृतिशेष भगवत रावत. दुनिया का सबसे कठिन काम है जीना. और उससे भी कठिन उसे, शब्द के. अर्थ की तरह. रच कर दिखा पाना. जिस देश में भगवत रहते हैं. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. कहाँ कौन. जुड़े रहो. इन्हें भी देखें. रंग बनारसी. रविवार डाट कॉम. मुकेश का देश काल. सीरज की नजर से देखो. प्रदीप की भोर. प्रदीप कान्त का तत्सम. बेहतर दुनिया की तलाश. कुमार अम्बुज. योगेन्द्र का शब्द सृजन. महेन की बतियाँ. शिरीष का अनुनाद. आशीष आलराउंडर.
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अ आ: February 2011
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यानी सीखने की शुरुआत. Friday, February 25, 2011. कविता के कुछ पते. मेरी कविता के कुछ पतेः. कवितायें अनुनाद. पर । चार कवितायें. समय संकल्प. पर। पांच कविताएं. पर। कुछ और कवितायें सुनहरी. पर पढ़ सकते हैं।. मेरी कविता. Tuesday, February 8, 2011. भगवत रावत का देश राग. जिस देश में भगवत रहते हैं. अरुण आदित्य. गहिरी नदी अगम बहै धरवा,. खेवन-हार के पडिग़ा फन्दा।. घर की वस्तु नजर नहि आवत,. दियना बारिके ढूँढ़त अन्धा. चुपचाप शांति से देखो यह दृश्य. वह निस्तेज नहीं हो रहा. ढल रहा है. इस पृथ्वी को...मैदान...बोल...
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अ आ: May 2011
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यानी सीखने की शुरुआत. Thursday, May 26, 2011. मदन कश्यप : ऐसा बहुत कम होता है मेरे साथ. सांप्रदायिकता. रामचंद्र. संस्कृतिकर्मी. साहित्य. हूं।. क्षेत्र. विज्ञान. थोड़ा. राजनीति।. इन्हीं. चीजों. ढूंढ़ता. निराशा. दृष्टि. हिंदी. भाषाओं. ज्यादा. हैं।. क्योंकि. गोष्ठी. समीक्षाएं. विश्लेषण. सामाजिक. मुद्दों. लिखीं. टिप्पणियां. थीं।. बनाता।. उन्होंने. सृजनात्मक. छोड़ा।. पीढ़ी. कथाकारों. काशीनाथ. विस्तार. कथाकारों. पीढ़ी. लेखकों. प्रतिबद्घता. दृष्टि. उन्हें. व्यवस्थित. दृष्टि. काव्यात्मक. अनामिका. विसं...
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अ आ: April 2009
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यानी सीखने की शुरुआत. Thursday, April 30, 2009. फूंकि फूंकि धरनी पग धारौ, महा कठिन है समौ अजोग. की ५३१ वीं जयंती के उपलक्ष्य में सूरदास. पुनर्मूल्यांकन. सूरदास: एक पुनर्पाठ. फूंकि. फूंकि. अरुण आदित्य. ऊधो, मन माने की बात।. दाख छुहारो छांडि़ अमृतफल, बिषकीरा बिष खात॥. जो चकोर को देइ कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।. मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥. ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात।. षटरस व्यंजन छाडि़ रसौई साग बिदुर घर खाये॥. आखिर बात क्या हुई भैयन? यानी तुम्हारì...सूर, कहौ सí...यह बî...
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अ आ: December 2009
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यानी सीखने की शुरुआत. Saturday, December 12, 2009. लिख ही डाला अंतिम वाक्य अंतिम बार. उपन्यास का आवरण चित्र सुपरिचित चित्रकार और कहानीकार प्रभु जोशी. का है।. उपन्यास का एक अंश साहित्यिक पत्रिका पाखी. के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुआ है, जिस पर काफी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।. एक और अंश साहित्यिक पत्रिका गुंजन. के आगामी अंक में आने वाला है।. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. कहाँ कौन. जुड़े रहो. इन्हें भी देखें. रंग बनारसी. रविवार डाट कॉम. प्रदीप की भोर. सचमुच समर्थ.