rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: November 2010
http://rashtrakavi.blogspot.com/2010_11_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Monday, November 8, 2010. Hum deewano ki kya hasti. हम दीवानों की क्या हस्ती,. हम आज यहाँ कल वहां चले. मस्ती का आलम साथ चला,. हम धूल उडाते जहाँ चले. आए बनकर उल्लास अभी. आँसू बनकर बह चले अभी,. सब कहते ही रह गए,. अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले? किस ओर चले? यह मत पूछो,. चलना है, बस इसलिए चले,. जग से उसका कुछ लिए चले,. जग को अपना कुछ दिए चले।. दो बात कही, दो बात सुनी,. कुछ हँसे और फिर कुछ रोये,. छक कर सुख दुःख घूंटों को. हम एक भाव से पिए चले।. Subscribe to: Posts (Atom).
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: लेन-देन
http://rashtrakavi.blogspot.com/2011/07/blog-post.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Wednesday, July 13, 2011. लेन-देन का हिसाब. लंबा और पुराना है।. जिनका कर्ज हमने खाया था,. उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।. और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,. उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।. लेन-देन का व्यापार अभी लंबा चलेगा।. जीवन अभी कई बार पैदा होगा. और कई बार जलेगा।. और लेन-देन का सारा व्यापार. जब चुक जायेगा,. ईश्वर हमसे खुद कहेगा -. तुम्हारा एक पावना मुझ पर भी है,. आओ, उसे ग्रहण करो।. अपना रूप छोड़ो,. मेरा स्वरूप वरण करो।. Subscribe to: Post Comments (Atom).
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: July 2011
http://rashtrakavi.blogspot.com/2011_07_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Wednesday, July 13, 2011. शोक की संतान. हृदय छोटा हो,. तो शोक वहां नहीं समाएगा।. और दर्द दस्तक दिये बिना. दरवाजे से लौट जाएगा।. टीस उसे उठती है,. जिसका भाग्य खुलता है।. वेदना गोद में उठाकर. सबको निहाल नहीं करती,. जिसका पुण्य प्रबल होता है,. वह अपने आसुओं से धुलता है।. तुम तो नदी की धारा के साथ. दौड़ रहे हो।. उस सुख को कैसे समझोगे,. जो हमें नदी को देखकर मिलता है।. और वह फूल. तुम्हें कैसे दिखाई देगा,. जो हमारी झिलमिल. देखकर जलते हो।. मान लोगे।. ईश्वर हमसे...तुम...
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: August 2010
http://rashtrakavi.blogspot.com/2010_08_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Tuesday, August 31, 2010. निराशावादी/Nirashavadi. पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,. धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;. उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,. बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।. क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ? तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,. लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है? बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।. निराशावादी. रामधारी सिंह दिनकर. Subscribe to: Posts (Atom). Order Online from Nykaa. Book Hotels from Agoda.
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: October 2009
http://rashtrakavi.blogspot.com/2009_10_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Saturday, October 24, 2009. भगवान के डाकिए /Bhagwan ke daakiye. पक्षी और बादल,. ये भगवान के डाकिए हैं. जो एक महादेश से. दूसरें महादेश को जाते हैं।. हम तो समझ नहीं पाते हैं. मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ. पेड़, पौधे, पनी और पहाड़. बाँचते हैं।. हम तो केवल यह आँकते हैं. कि एक देश की धरती. दूसरे देश को सुगंध भेजती है।. और वह सौरभ हवा में तैरते हुए. पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।. और एक देश का भाप. दूसरे देश में पानी. बनकर गिरता है।. Labels: bhagwan ke dakiye. वह जिधर च...
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: January 2010
http://rashtrakavi.blogspot.com/2010_01_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Wednesday, January 13, 2010. कभी यूँ भी तो हो/Kabhi yun bhi to ho. कभी यूँ भी तो हो. दरिया का साहिल हो. पूरे चाँद की रात हो. और तुम आओ. कभी यूँ भी तो हो. परियों की महफ़िल हो. कोई तुम्हारी बात हो. और तुम आओ. कभी यूँ भी तो हो. ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें. जब घर से तुम्हारे गुज़रें. तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें. मेरे घर ले आयें. कभी यूँ भी तो हो. सूनी हर मंज़िल हो. कोई न मेरे साथ हो. और तुम आओ. कभी यूँ भी तो हो. ये बादल ऐसा टूट के बरसे. और तुम आओ. Kabhi yun bhi to ho.
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: December 2010
http://rashtrakavi.blogspot.com/2010_12_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Saturday, December 25, 2010. आई में आ गए. सीधी नजर हुयी तो सीट पर बिठा गए।. टेढी हुयी तो कान पकड कर उठा गये।. सुन कर रिजल्ट गिर पडे दौरा पडा दिल का।. डाक्टर इलेक्शन का रियेक्शन बता गये ।. अन्दर से हंस रहे है विरोधी की मौत पर।. ऊपर से ग्लीसरीन के आंसू बहा गये ।. भूंखो के पेट देखकर नेताजी रो पडे ।. पार्टी में बीस खस्ता कचौडी उडा गये ।. जब देखा अपने दल में कोई दम नही रहा ।. करते रहो आलोचना देते रहो गाली. Labels: aai me aa gaye. आई में आ गए. Subscribe to: Posts (Atom).
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: कुछ भी बन बस कायर मत बन ।
http://rashtrakavi.blogspot.com/2011/06/blog-post_29.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Wednesday, June 29, 2011. कुछ भी बन बस कायर मत बन ।. कुछ भी बन बस कायर मत बन ।. ठोकर मार पटक मत माथा. तेरी राह रोकते पाहन. कुछ भी बन बस कायर मत बन ।. तेरी रक्षा का न मोल है. पर तेरा मानव अनमोल है. यह मिटता है वह बनता है. अर्पण कर सर्वस्व मनुज को. कर न दुष्ट को आत्म समर्पण. कुछ भी बन बस कायर मत बन ।. कुछ भी बन बस कायर मत बन ।. दुष्यंत कुमार. January 18, 2012 at 9:55 PM. Bahut hi umda rachna baanti hmare sath,shukriya. Subscribe to: Post Comments (Atom).
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: February 2010
http://rashtrakavi.blogspot.com/2010_02_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Friday, February 5, 2010. और भी दूँ /Aur bhi dun. मन समर्पित, तन समर्पित,. और यह जीवन समर्पित।. चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।. मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,. किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-. थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी,. कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण।. गान अर्पित, प्राण अर्पित,. रक्त का कण-कण समर्पित।. चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।. मॉंज दो तलवार को, लाओ न देरी,. सुमन अर्पित, चमन अर्पित,. Labels: Aur bhi dun. लगता म&...
rashtrakavi.blogspot.com
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi: September 2009
http://rashtrakavi.blogspot.com/2009_09_01_archive.html
Indian Nationalist Poets - Rashtrakavi. Monday, September 28, 2009. जियो जियो अय हिन्दुस्तान / / Jiyo Jiyo ae hindustan. जाग रहे हम वीर जवान,. जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,. हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।. हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।. हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।. वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं. तन मन धन तुम पर कुर्बान,. हम उन वीरों की सन्तान ,. पर की हम कुछ नहीं च&#...जिसकी उ&#...जिय...